Maghar Leela
मगहर की लीला
लगभग 600 वर्ष पूर्व काशी शहर में पूर्ण परमात्मा कबीर देव जी अपने अमरलोक (सतलोक) से चलकर सशरीर अवतरित हुए थे। परमात्मा लहरतारा नाम के सरोवर में आकर एक कमल के फूल पर नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए थे। जहा से एक वृद्ध दंपत्ति उनको अपने साथ घर ले जाकर पालन पोषण करने लगे।
एक सवाल बनता है, की सर्व सृष्टि का पालक खुद एक वृद्ध माता-पिता से अपना लालन-पालन क्यों करवा रहा है? 🤔
अगर आपके दिमाग में भी यही प्रश्न आ रहा है, तो नीचे दी गई लिंक पर जाकर आप वीडियो में देख सकते हैं
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धीरे धीरे परमेश्वर कबीर जी अपने ज्ञान के प्रभाव से पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गए उनके ज्ञान से प्रभावित होकर बहुत से दुःखी लोगो ने ज्ञान को स्वीकार किया और नाम उपदेश भी लिया।
काशी नगर के राजा वीर सिंह बघेल और मगहर के नवाब बिजली खां पठान दोनों ही कबीर देव जी की शरण ग्रहण कर भक्ति किया करते थे।
काशी नगर के राजा वीर सिंह बघेल उनकी पत्नी ने नाम उपदेश लेकर भक्ति करने लगे। गोरखपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर एक कस्बा है जिसका नाम मगहर है। मगहर का नवाब बिजली खान पठान थे। एक बार मगहर में अकाल पड़ा। नवाब ने सभी तरह के उपाय आजमा दए थे पर उसके राज्य से यह संकट समाप्त नहीं हो रहा था। बिजली खा पठान ने सभी जंतर मंतर कर लिए थे। सभी सिद्ध पुरुषों ने हाथ खड़े कर दिए और नवाब से कहा कि आपके सल्तनत में अगले चार वर्षो तक वर्षा नहीं होगी। चार वर्ष तक अकाल रहेगा तब नवाब बिजली खां पठान काशी में अपने परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी के पास गए और उनसे मगहर आने की विनती की। कबीर परमेश्वर मगहर गए और वहां उन्होंने घनघोर वर्षा करदी। सभी सूखे तालाब नदिया को जल से भर दिया। परमात्मा के इस चमत्कार को देखकर मगहर के वासियों ने उनसे ज्ञान सुना और दीक्षा लेली। मगहर में कुल जनता आधे हिंदू और आधे मुसलमान को मिलाकर है।
एक कहावत है - मारता क्या नहीं करता, मगहर के सारे नागरिक दुःखी थे, परमात्मा कबीर जी के ज्ञान से उनको समझ आ गया था कि यह भक्ति ही उनको उनके दुखों से मुक्ति दिला सकती है।
मगहर भविष्यवाणी
एक बार काशी के ब्राह्मणों ने एक अफवाह भोली जनता में फैला दी कि जो मगर मैं मरता है वह नरक जाता है और जो काशी में मरता है वह स्वर्ग चला जाता है। तब कबीर परमेश्वर ने उन पाखंडी ब्राह्मणों से काहा, तुम मूर्ख बना रहे हो इन भोली जनता को!, मैं मगहर में शरीर छोड़ूंगा और मैं स्वर्ग से भी आगे सतलोक में चला जाऊंगा"। इस बात का ब्राह्मणों पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने अपने पाखंड को पूरी तरह फैला दिया था जनता भी इस बात पर विश्वास करके काशी में अपने प्राण त्यागने से संकोच नहीं कर रही थी। कबीर परमात्मा कि उस समय आयु 120 वर्ष हो चुकी थी।
आपको बता दूं कि यह भी कबीर परमात्मा की लीला थी कि उनका शरीर 120 वर्ष का दिखाई देता था। परमात्मा कबीर देव अशांख्य ब्रह्मांडो के स्वामी है, उनकी आयु की गणना नहीं की जा सकती, वे अविनाशी प्रभु है। जिसकी कोई उम्र नहीं, वह अजन्मा है अजर और अमर है।😇🙇🏻♀️
कबीर देव जी ने काशी को छोड़ मगहर में अपने शरीर त्यागने के लिए पैदल चल पड़े। ये समझने के लिए की मुक्ति के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्यकता नहीं होती बल्कि मुक्ति किसी भी जगह से सच्चे मंत्रों के सिमरन से प्राप्त की जाती है। कबीर परमात्मा के साथ काशी नरेश वीर सिंह बघेल अपनी सेना के साथ यह विचार लेकर चल पड़े की गुरुदेव जी का शरीर वापिस काशी में ले आऊंगा और हिन्दू रीति के अनुसार गुरुदेव जी का अंतिम संस्कार करूंगा। कबीर परमात्मा के साथ काशी के बहुत से आम नागरिक भी दर्शनार्थ मगहर के लिए पैदल चल पड़े। और साथ ही साथ मगहर के पण्डित ब्राह्मण अपने शास्त्रों के साथ चल दिए ये देखने के लिए कि कबीर जी मरने के बाद कहां जाएंगे।
अपने गुरुदेव जी और काशी के राजा वीर सिंह बघेल अपने सेना और काशी के नागर वासियों सहित के आने की खबर मगहर नवाब बिजली खान पठान और नागर वासियों लग गई। बिजली खां पठान समझ चुके थे कि वीर सिंह बघेल अपनी सेना किस इरादे से साथ लेकर आ रहे हैं। तब उन्होंने मुसलमान सलाहकारों से सलाह लेना चाही। सलाहकरो ने कहा कि हम अपने गुरुदेव / पीर का अंतिम संस्कार मुसलमान रीति से करेंगे पीर जी का शव इन हिन्दुओं को नहीं देंगे। यदि काशी नरेश नहीं मनेगे तो आपस में युद्ध भी कर लेंगे पर गुरुदेव जी का अंतिम संस्कार हम ही करेंगे।
मगहर में श्रापित सुखी नदीम पानी बहाना
काशी से मगहर की दूरी लगभग 175 किलोमीटर है इसलिए कबीर परमेश्वर जी को पैदल चलकर आने में 3 दिन का समय लगा। वहां पहुंचकर कबीर परमात्मा को देखकर बिजली खा पठान ने उनको प्रणाम किया। परमेश्वर ने उनको वहां आने का कारण बताकर स्वच्छ जल से स्नान करने की इच्छा व्यक्त। बिजली खा पठान ने पहले ही सारी व्यवस्था कर ली थी, उसने परमात्मा से कहा आपके लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था कर दी है। परमात्मा ने कहा "मैं बहते दरिया में स्नान करूंगा"। नवाब ने कहा की गुरुदेव! यहां पहले एक आमी दरिया बहती थी लेकिन भगवान शिव के श्राप से वह पूरी तरह सूख चुकी है। परमात्मा ने कहा चलो मुझे दिखाओ कहां है वह आमी नदी! जहां परमात्मा खड़े थे वहां से 600 फुट की दूरी पर वह नदी थी। आसपास मौजूद हजारों लोगों के सामने परमात्मा कबीर देव जी ने नदी की तरफ खड़े होकर अपने हाथ से चलने का इशारा किया, थोड़ी सी दूरी पर एक जोरदार विस्फोट हुआ फिर सुखी हुई नदी पूरी तरह पानी से भर गई। सभी ने स्नान किया और जल पिया। उसके बाद परमात्मा कबीर जी ने कहा, " दो चादर लेकर आओ, एक बिछाऊगा एक ओडूंगा"।
परमात्मा ने दोनों राजाओं से एक तार आप दोनों अपनी सेना किस लिए लेकर आए हो?
यह सुनकर दोनों राजाओं ने अपने सिर नीचे झुका दिए। साथ आए हिंदुओं ने परमात्मा से कहा कि हम आपके शरीर को साथ लेकर जाएंगे और अपने हिंदू रीति-रिवाज से दाह संस्कार करेंगे हम आपके शव को ढेड मुसलमान को हाथ तक नहीं लगने देंगे। मुसलमान भी कहने लगे कि हम हिंदू काफिरों के हाथ आपके शब्द को नहीं लगने देंगे हम आपके शरीर का अंतिम संस्कार अपने इस्लाम धर्म के अनुसार करेंगे और यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम युद्ध करके शरीर प्राप्त कर लेंगे। यह सुनकर कबीर परमात्मा ने कहा, "भोले भक्त! 120 वर्ष हो गए तुमको ज्ञान देते, आज तक तुम मेरी शिक्षा का इतना ही पालन कर पाए हो? आज भी तुम हिंदू मुसलमान दो बने खड़े हो? खबरदार!! जो तुमने झगड़ा किया तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा। और सुनो, तुमको मेरा शरीर नहीं मिलेगा। फिर भी तुम झगड़ा नहीं करना एक चादर हिंदू ले लेंगे एक चादर मुसलमान ले लेंगे और दोनों चादरों के बीच में जो वस्तु मिले बराबर आधा-आधा बांट लेना। आपस में लड़ना नहीं गृह युद्ध हो जाएगा महाभारत से ज्यादा भयानक युद्ध शुरू हो जाएगा।" यह सुनकर भी दोनों पक्षों के नरेश मन में यह सोच रहे थे कि एक बार गुरुदेव शरीर छोड़ दे, फिर हम अपने आप देख लेंगे, फिर हम किसी नहीं सुनेगे।
परमात्मा बिछी हुई चादर पर लेट गए और ऊपर से एक चादर ओढ़ लिया। आकाशवाणी हुई, 'देख लो ब्राह्मण, मैं जा रहा हूं सतलोक'। वहां मोजूद सभी ने आकाश की तरफ देखा, पूर्ण परमात्मा कबीर जी साशरीर आकाश में उड़ते हुए उपर जा रहे थे। उनका नुरी शरीर था प्रकाशमय शरीर वाले कबीर परमात्मा आकाश में आगे जाते हुए बोले, "उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा"।
जब उन्होंने चादर उठाकर देखा तो उसमें सुगंधित फूल थे।
जिस स्थान पर कबीर परमात्मा लेते थे उस स्थान पर जितना शरीर था उतनी जगह पर सुगन्धित फूल थे।🌺🌹🌷🌼
परमात्मा की इस लीला ने ग्रह युद्ध होने टाल दिया। कहां दोनों राजाओं की सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी थी वहां दोनों राजा एक दूसरे के गले लगकर रो रहे थे। और सभी हिन्दू मुस्लिम भी एक दूसरे को गले लगा कर रो रहे थे। यह ऐसा दृश्य था जैसे किसी छोटे बच्चे के माता पिता उससे दूर हो जाए तो वो उनको ना पाकर बहुत रोता है।😢😢
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कबीर परमात्मा ने अशंखो बार लीलाएं की है पर ये खुछ खास थी जिनको आपके लिए अपने परम पूज्य गुरु देव संत रामपाल जी महाराज की कृपा से आपके लिए लिखी है।
इस अनोखी लीला से आपको क्या सीख मिली अपना जनाब मुझे जरूर बताना और हा, इस Post को अपने Friends के साथ भी जरूर share करना ♥️😊।
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- Thnak you......😊🌼
मगहर में हिन्दू मुसलमानों के बीच का युद्ध टाल दिया था परमात्मा ने।
ReplyDeleteहिन्दू मुसलमानों में यह झगड़ा था कि वे अपने गुरु कबीर परमेश्वर जी का अंतिम संस्कार अपनी-अपनी विधि से करना चाहते थे। कबीर जी द्वारा मगहर में शरीर त्यागने के बाद उनके शरीर की जगह सुगन्धित पुष्प मिले जिस वजह से हिन्दू मुस्लमान का भयंकर युद्ध टला था। वे सभी एक दूसरे के सीने से लग कर रोये थे जैसे किसी बच्चे की माँ मर जाती है। यह समर्थता कबीर परमेश्वर जी ने दिखाई जिससे गृहयुद्ध टला।मगहर में परमात्मा का चमत्कार!
कबीर परमेश्वर जी के अद्भुत चमत्कार जैसे अकाल से बचाना, सूखी आमी नदी बहाना, सशरीर सतलोक जाना आदि देखकर तथा उनके द्वारा दिए तत्वज्ञान का अनुसरण करके मगहर के सर्व हिंदू-मुसलमान आज भी विशेष प्रेम से रहते हैं। आज तक उनकी धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं हुई।
"मगहर का मौहल्ला कबीर करम"
कबीर परमेश्वर जी ने मगहर रियासत में 14वीं शताब्दी में पड़े भीषण अकाल को अपनी समर्थ शक्ति से टालकर वर्षा करके सबको जीवनदान दिया। हजारों हिंदू-मुसलमानों ने उपदेश लिया। एक 70 वर्षीय निःसंतान मुसलमान दंपती को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, नाम है "मौहल्ला कबीर करम"
Sat saheb ji
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